Sunday, August 23, 2009

विंडोज़ में गूगल की सेंध

विंडोज़ में गूगल की सेंध

माउन्टेन व्यू, कैलिफोर्निया में गूगल का दफ्तरइंटरनेट की विशाल कंपनी गूगल माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज़ को सीधी चुनौती देने के लिए अपना ऑपरेटिंग सिस्टम ला रहा है. गूगल ने हाल ही में अपना इंटरनेट ब्राउज़र क्रोम भी शुरू किया है.

समझा जाता है कि अगले साल तक बाज़ार में आने वाले गूगल के ऑपरेटिंग सिस्टम के बाद माइक्रोसॉफ़्ट और गूगल की जंग अगले स्तर पर पहुंच जाएगी. पिछले कुछ साल में गूगल ने इंटरनेट में क्रांति ला दी है और हाल के सालों में वह सबसे बड़ी इंटरनेट कंपनी बन कर उभरा है. लेकिन इंटरनेट के अलावा कंप्यूटर के मामले में आज भी बिल गेट्स की माइक्रोसॉफ़्ट का जवाब नहीं. इंटरनेट ब्राउज़र से लेकर कंप्यूटर चलाने के लिए ज़रूरी ऑपरेटिंग सिस्टम हो या "वर्ड" या "एक्सेल" सॉफ़्टवेयर, हर जगह माइक्रोसॉफ़्ट की तूती बोलती है.

इंटरनेट की सबसे कामयाब कंपनी बनने के बाद गूगल ने अपने पैर सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में भी पसारने का फ़ैसला किया है. गूगल ने ऐसी चीज़ें शुरू कीं, जिनकी पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. इनमें "गूगल अर्थ" और इन दिनों सबसे लोकप्रिय हो चला "जीमेल" शामिल है. "गूगल टॉक" और "गूगल टूल बार" जैसी सर्विसें भी पूरी दुनिया में लोकप्रिय होती जा रही है.

गूगल अब अपने इंटरनेट ब्राउज़र "गूगल क्रोम" को आधार बना कर चलाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम तैयार कर रहा है. दुनिया में इस वक्त सबसे ज़्यादा लोकप्रिय ब्राउज़र माइक्रोसॉफ़्ट का "इंटरनेट एक्सप्लोरर" है, जबकि "मोज़िला फ़ायरफ़ॉक्स" और एपल का "सफ़ारी" भी कई जगहों पर इस्तेमाल होता है. लेकिन "गूगल क्रोम" के बाज़ार में आने के बाद माइक्रोसॉफ़्ट को बड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है.

इसी तरह माइक्रोसॉफ़्ट के "विंडोज़ एक्सपी" और "विंडोज़ विस्टा" को चुनौती देने के लिए गूगल का ऑपरेटिंग सिस्टम अगले साल तक बाज़ार में आ जाएगा. गूगल ने बताया कि शुरू में यह छोटे और सस्ते कंप्यूटरों में चलेगा. हाल के दिनों में लैप टॉप और पर्सनल कंप्यूटरों की जगह छोटे छोटे नेटबुकों ने ले ली है. हल्के वज़न वाले ये नेटबुक, जिन्हें पहले लैपटॉप कहते थे, सस्ते भी होते हैं और इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान भी होता है.गूगल ने बताया की आने वाले समय में इस सॉफ्टवेयर को पर्सनल कम्प्यूटर (घरेलू डेस्कटॉप कंप्यूटर) पर भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.

गूगल का कहना है कि उसका ऑपरेटिंग सिस्टम मुख्य रूप से इंटरनेट को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. माइक्रोसॉफ़्ट के ऑपरेशन उस वक्त से चल रहे हैं, जब इंटरनेट इतना लोकप्रिय नहीं थाBildunterschrift: Großansicht des Bildes mit der Bildunterschrift: क्रोम के बाद क्रोम ओएस.

गूगल के वाइस प्रेसिडेंट सुन्दर पिचाई ने बताया, " गूगल ऑपरेटिंग सिस्टम क्रोम के तीन उद्देश्य होंगे. स्पीड, सिम्पल और सिक्योरिटी", यानी तेज़, आसान और सुरक्षित. गूगल के इंजीनियरिंग विभाग के डायरेक्टर लाइनस उपसन ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि उन्होंने कंप्यूटर को तेज़ी से चलने के लिए "गूगल क्रोम ऑपरेटिंग सिस्टम" इस तरह तैयार किया है कि वह कंप्यूटर पर ज़्यादा जगह न ले. कई बार ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर पर काफी ज्यादा जगह खा जाते हैं. हल्का और छोटा होने की वजह से गूगल क्रोम अपना काम शुरू करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाएगा और तेजी से इंटरनेट से भी कनेक्ट हो सकेगा.

गूगल ने बताया कि उसका यह सॉफ्टवेयर इस महीने के अंत तक जारी किया जाएगा. यह सॉफ्टवेयर शुरुआती दौर में ओपन सोर्स लाइसेंस के तहत पेश किया जाएगा जिसका मतलब होगा कि दुनिया भर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर और सॉफ्टवेयर डेवलपर इसे इस्तेमाल करने का मौका पा सकेंगे और वे इसमें सुधार करने के सुझाव दे सकेंगे.

एक साल के अंदर गूगल इस सॉफ्टवेयर को नेटबुक कंप्यूटरों से साथ बेच सकेगा. गूगल के अनुसार क्रोम पहला ऑपरेटिंग सिस्टम होगा जो न सिर्फ कंप्यूटर को चलाएगा बल्कि उसे इंटरनेट पर तेज़ी से दौड़ने में मदद भी करेगा. क्रोम सॉफ्टवेयर के लांच के साथ गूगल एक तरह से माइक्रोसॉफ़्ट को बड़ी चुनौती दे रहा है. आज से पहले कई कंपनियों ने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम बाज़ार में उतारने की कोशिश की लेकिन कोई भी माइक्रोसोफ्ट के विन्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम के सामने टिक नहीं पाया.

कुछ जानकारों का मानना है कि दुनिया भर में लगभग 90 प्रतिशत कंप्यूटरों पर माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल किया जाता है. माइक्रोसॉफ़्ट अक्टूबर में विन्डोज़ 7 नाम से नया ऑपरेटिंग सिस्टम बाज़ार में उतारने वाला है. हाल के दिनों में गूगल और माइक्रोसॉफ्ट की सीधी टक्कर हो रही है. "इंटरनेट एक्स्प्लोरर" के जवाब में "गूगल क्रोम वेब ब्राउजर" पेश किया जा चुका है. इसके बाद गूगल ने मोबाइल फ़ोन पर इस्तेमाल के लिए "एन्ड्रोइड" नाम का ऑपरेटिंग सिस्टम लांच किया, जिसे माइक्रोसॉफ्ट के "विन्डोज़ मोबाइल" का जवाब माना जा रहा है.

रिपोर्टः एजेंसिया/ पी चौधरी

Why Google Voice Sparked The Apple-Google War

The simple lesson both Apple and Google learned from Microsoft is that the whole is greater than the sum of its parts. You might be of the opinion that every application Microsoft ever rolled out sucks -– Word, Excel, Outlook, SharePoint, etc. –- but you’d still have to admit that combining all these elements is what made Microsoft incredibly powerful and successful.

Microsoft is trying to port that success from the client-server world onto the Web, beginning next year with Office 2010. But last month’s bait-and-switch announcement of a free online version is an acknowledgment of the threat Microsoft sees from Google and Apple to disrupt its plans.

But Google’s end-game is very different from Apple’s. Apple is focused on using the Web to keep generating high-margin revenues, while Google simply wants customers spending more of their time on the open Web, where they will eventually search and click on ads more often. Apple’s aim is to sell more devices that keep customers connected to the Web and buying more apps through iTunes. That the two companies should clash is no surprise. That the spark that ignited their war (and led directly to Google CEO Eric Schmidt’s resignation from Apple’s board) is Google Voice comes as somewhat as a surprise, until you realize that Google Voice represents the kind of intrusion on Apple’s hegemony that it just couldn’t abide.

Both Google and Apple have significant head starts on the Web, but their approaches to it are very different. One is native to the “Open Web,” and one is not. Apple comes from a client-desktop world, and believes in controlling the code third-party developers can access, what customers can download to their devices, and in tying software and devices together. Apple is a reflection of CEO Steve Jobs, its lord and master, and everything flows from his fountainhead.

Google, on the other hand, is Web-native and believes in throwing stuff at the wall and seeing what sticks; Google open-sourced Android when it could have kept it proprietary, and Google clearly believes in crowd-sourcing source code and application development.

In the end, though, both companies need customers to be fully invested in their respective environments. Like Microsoft, Google wants to create a larger whole: productivity applications, voice and written communication, and collaboration spaces — all linked together, perhaps in an application like Wave.

For Apple, which wants to control every aspect of its customers’ experience, Google Voice is a blemish on the smooth surface of its garden wall, and therefore anathema.

[Image source: geograph.org.uk]